जशपुर,टीम पत्रवार्ता,17 नवंबर 2024
By योगेश थवाईत
जशपुर जिले के कुनकुरी विधानसभा से छत्तीसगढ़ को आदिवासी मुख्यमंत्री का नेतृत्व मिलना अपने आप में समूचे आदिवासी जनजातीय समाज के लिए गौरव का विषय है वहीं दूसरी ओर मिशनरी इससे नाखुश नजर आ रहे हैं क्योंकि पिछले सरकार में उन्हें ईसाई समाज से पहली बार प्रदेश के विधानसभा में नेतृत्व मिला था जो अब ध्वस्त हो चुका है।एक बार फिर से ईसाई समुदाय एकजुट होकर फिर से किला फतह करने की कोशिश में लगा नजर आ रहा है जिसमें अंदर खाने से न केवल कांग्रेस बल्कि बड़े ईसाई संगठनों के लीडर भी पूरी शिद्दत से लगे हुए हैं।इनका पहला टारगेट कुनकुरी विधानसभा है जो प्रदेश के सीएम का विधानसभा क्षेत्र है।क्यूं आगे समझिए...?
यूं तो जशपुर जिले में 1909 में ईसाईयत की शुरुआत हुई जो पिछले 125 वर्षों से लगातार अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। एशिया का सबसे बड़ा चर्च कुनकुरी विधानसभा में स्थापित है,जशपुर धर्मप्रान्त के बिशप स्वामी भी यहीं हैं।एक प्रकार से जिले का मिशनरी हब हम कुनकुरी को कह सकते हैं जहां से ईसाई नेतृत्व अपने अस्तित्व की राह तलाश कर रहा है।हालांकि ईसाई समाज का सामाजिक ताना बाना बिल्कुल अलग है जो अपने को राजनीति से पृथक रखती है जो खुद भी राजनीति के लिए प्रेरित होती है इसके बावजूद भाजपा नेताओं के आरोप प्रत्यारोप की मानें तो अंततः मिशनरी कांग्रेस समर्थित ही माने जाते रहे हैं।
पिछले 2023 के विधानसभा चुनाव में ईसाई समुदाय ने एकजुट होकर जशपुर, कुनकुरी,पत्थलगांव समेत प्रदेश के अन्य हिस्सों में अपने उम्मीदवार उतारे पर सामाजिक फूट के कारण उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिला और वे हाशिए पर आ गए।
उन्हें बड़ा नुकसान ये हुआ कि उन्हें एक भी सीट नहीं मिली जिसपर कोई ईसाई समुदाय से विधायक बना हो।यह फुट एकजुट कैसे हो अब ईसाई नेताओं ने इस पर मंथन शुरु कर दिया है और बड़ी गंभीरता से वे समाज को एकजुट करने में लगे हुए हैं।इसके लिए बकायदा बैठकों का दौर जारी है।
जशपुर जिले में जिस प्रकार से पिछले दिनों ईसाई समुदाय ने न्याय यात्रा निकाली जैसा नेतृत्व दिखा वह कहीं न कहीं राजनीति से प्रेरित दिखा जिसमें कांग्रेस के नेता भी हलचल करते नजर आए या सीधे तौर पर हम कहें कि ईसाई आदिवासी महासभा के साथ कांग्रेस ने पूरा सहयोग किया।
राजनैतिक दृष्टिकोण से देखें तो कांग्रेस ने पहली बार कुनकुरी विधानसभा से ईसाई उम्मीदवार पर दांव लगाया था जिसे पहली बार जीत मिली थी।हालांकि कांग्रेस की इस जीत को ईसाई विधायक अक्षुण्ण बनाए रखने में नाकाम रहे जिसका दूसरा पहलु यह रहा कि कुनकुरी विधानसभा में भले ही ईसाई एकजुट नहीं हो पाए पर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ और भाजपा के उम्मीदवार प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को बड़ी बढ़त के साथ जीत मिली जिससे प्रदेश को आदिवासी नेतृत्व का गौरव प्राप्त हुआ।
मिशनरियों की इस बौखलाहट के साथ उनकी राजनैतिक महत्वकांक्षाएं सतत बढ़ती जा रही हैं।इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज जिले ही नहीं पूरे प्रदेश में ईसाई आदिवासी महासभा का बड़ा ईसाई संगठन स्वतंत्र नेतृत्व की तलाश में हैं जिसका मुख्य केंद्र जशपुर जिला है।यहां से न केवल ईसाइयों को एकजुट करने की कवायद की जा रही है बल्कि अंदरखाने से भाजपा के विरुद्ध एक बड़ा तंत्र तैयार किया जा रहा है जो आने वाले समय में बड़ी टक्कर दे सके।
वर्तमान समय में कुनकुरी विधानसभा ही ऐसी सुरक्षित सीट है जहां से इन्हें नेतृत्व मिलने की उम्मीद लगी हुई है इसके अलावा जो जातिगत समीकरण है वह मिशनरियों के लिए कहीं से उपयुक्त नहीं दिखता।हिंदू उरांव,कंवर बहुलता को देखते हुए भाजपा हमेशा अपने जनजातीय उम्मीदारों पर दांव लगाती है वहीं कांग्रेस मिशनरी एकजुटता को हमेशा दरकिनार कर भाजपा की राह तलाशती है और चारों खाने चित्त होकर बैकफुट पर आ जाती है।इससे ईसाई समाज हमेशा आहत रहता है और इसका खामियाजा पूरे समाज को उठाना पड़ता है।
अब ईसाई समुदाय को एकजुट करने की कवायद भविष्य की राजनीति का बड़ा आधार माना जा रहा है।फिलहाल यह समझने की आवश्यकता है 125 वर्ष पहले जशपुर जिले में आई ईसाईयत अब प्रदेश के नेतृत्व के लिए अग्रसर होती नजर आ रही है।
तमाम गतिरोध, प्रतिरोध,आपरेशन घर वापसी समेत ऐसे प्रकल्प जो सतत कथित धर्मांतरण,मतांतरण के लिए संघर्षरत रहे हैं वे आज महज राजनीति का हिस्सा बनते नजर आ रहे हैं। जरुरत है जमीनी क्रियान्वयन की जिससे जशपुर का जश जगजीवंत हो सके।
बहरहाल सियासती ताना बाना इस कदर उलझा हुआ है कि जशपुर ही नहीं प्रदेश में लगातार बढ़ते कथित धर्मांतरण,मतांतरण के मुद्दे पर अब भाजपा को गंभीर होकर विचार करना होगा जिससे सनातन संस्कृति को सुरक्षित संवर्धित किया जा सके।
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