... सरोकार :जानें क्या है ,,? "अहीर समाज की गौरवशाली परंपरा ",आज भी घरों के देवस्थल में स्थापित है "वीरकुंवर और गोरेया की "लाठी",किसी भी आपातकाल,विपत्तिकाल में "लाठी" से होता है,हर संकट का समाधान ,सुख,समृद्धि और शांति के लिए की जाती है "लाठी की पूजा",हर तीन साल में "खौलते दूध से नहाकर करते हैं "कराह पूजन"

पत्रवार्ता में अपनी ख़बरों के लिए 9424187187 पर व्हाट्सप करें

सरोकार :जानें क्या है ,,? "अहीर समाज की गौरवशाली परंपरा ",आज भी घरों के देवस्थल में स्थापित है "वीरकुंवर और गोरेया की "लाठी",किसी भी आपातकाल,विपत्तिकाल में "लाठी" से होता है,हर संकट का समाधान ,सुख,समृद्धि और शांति के लिए की जाती है "लाठी की पूजा",हर तीन साल में "खौलते दूध से नहाकर करते हैं "कराह पूजन"

 


जशपुर,टीम पत्रवार्ता,05 अक्टूबर 2021

BY योगेश थवाईत 

किसी भी सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ रखने के लिए अपने समाज की प्राचीन परंपरा को जीवंत रखना आवश्यक होता है जिससे समाज एकसूत्र में बंधा रहता है।आपको हम ऐसी ही एक सामाजिक परंपरा बताने जा रहे हैं जिसे अहीर समाज के द्वारा आज भी जीवंत रखते हुए उसका निर्वहन किया जा रहा है।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी अहीर समाज के द्वारा घरों के देवस्थलों में लाठी को देवतुल्य मानकर उसे  स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है।इतना ही नहीं हर तीन साल में कराह पूजन कर खौलते दूध से नहाकर सबके सुख समृद्धि की कामना की जाती है।जशपुर जिले के कई हिस्सों में समाज के लोग आज भी अपने इस गौरवशाली परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं

प्रदेश के कई हिस्सों में अहीर समाज के लोग आज भी अपनी पुरातन प्राचीन परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं जिसमें जशपुर जिले के पाठ समेत निचले क्षेत्रों में बड़ी संख्या में समाज के लोग निवासरत हैं।अहीर समाज के सुखलाल यादव बताते हैं कि मूलतः लाठी और कम्बल रखने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है इसके साथ ही गोपालन व भैंसपालन के साथ जीविकोपार्जन के साथ अपनी गौरवशाली परंपरा का निर्वहन करते हुए हर क्षेत्र में अहीर समाज के लोग नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।

देवतुल्य है लाठी  

समाज के जानकार बताते हैं कि अहीर समाज के घरों में विशेष पूजन कक्ष होता है जहाँ वीरकुंवर लाठी व गोरेया लाठी का विशेष स्थान होता है।जिसका नित्य पूजन कर उसे देवस्वरूप माना जाता है।देवस्थलों में दो प्रकार की उक्त लाठी देवस्वरूप स्थापित की जाती है।जिसमें पहली लाठी होती है "गोरेया लाठी" जिसे गाय भैंस की रक्षा करने वाले देवता के रुप में स्थापित किया जाता है वहीँ दूसरी लाठी वीरता के प्रतीक वीरकुंवर की होती है।जिसे केवल दीपवाली के बाद गोवर्धन पूजा में बाहर निकाला जाता है।ऐसी मान्यता है कि पूजन के पश्चात उसका स्पर्श गाय व भैंसों को कराया जाता है जिससे उनके सभी कष्ट बाधा दूर हो जाते हैं। 

हर विपदा में लाठी का अलग महत्त्व 

लाठी को लेकर समाज में ऐसी मान्यता है कि वीरकुंवर की लाठी पूजन के अलावा बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में निकाली जाती है।जिससे हर प्रकार की विपदा दूर हो जाती है।वहीँ गोरेया लाठी को लेकर मान्यता है कि यह अहीर समाज की रक्षा करने वाले देवता के प्रतीक के रुप में स्थापित होती है।जिसे अत्यंत विषम परिस्थितियों में आपातकाल में निकाली जाती है।और इसकी खासियत यह है कि लाठी देवस्थल से निकालने के बाद कैसी भी आपदा क्यों न हो वह स्वयमेव शांत हो जाती है।

सबसे बड़ी बात यह है कि कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न हो जब वीरकुंवर और गोरेया लाठी एक साथ निकल जाती है तो कोई भी विवाद समस्या तत्काल निराकृत हो जाती है।जबकि उन लाठियों का प्रयोग करने की अवश्यकता भी नहीं पड़ती।

लाठी रखने के बने हैं कड़े नियम 

जिस लाठी को देवतुल्य मानकर उसकी पूजा अहीर समाज में की जाती है उसे घर के देवस्थल में  रखने के कई कड़े नियम बने हुए हैं।जिसमें शुद्धता का विशेष महत्त्व है।समाज के जानकार बताते हैं कि जहाँ यह लाठी स्थापित होती है वहां बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित होता है।यहाँ तक कि घर की बेटी को शादी के बाद विदा करने के बाद उसका प्रवेश भी वहां वर्जित होता है।वहीँ नई बहु जब समाज में शामिल हो जाती है तो वह उस कक्ष में प्रवेश कर सकती है।

दीपावली में होता है विशेष पूजन 

ऐसी मान्यता है कि वर्ष में एक बार दीपावली के बाद गोवर्धन पूजन के साथ ही वीरकुंवर और गोरेया लाठी का पूजन किया जाता है।इस दौरान लाठी का दूध से अभिषेक करने के बाद घी पिलाने की परंपरा बनी हुई है।इस पूजन के साथ भैरव बाबा व बंजारी माता का भी पूजन किया जाता है।पूजन के बाद लाठी को घुमाया जाता है जिसे गाँव घर परिवार समेत गाय व भैंस के कष्ट बाधा निवारण के लिए स्पर्श कराया जाता है।ऐसी मान्यता है कि लाठी के स्पर्श मात्र से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।

खौलते दूध में नहाकर  होता है कराह पूजन 

अहीर समाज में कराह पूजन एक बड़ा अध्यात्मिक प्रयोग है जिसमें केवल कंडे में घी की कुछ बूंदें डालकर सूर्य भगवान से सीधे अग्नि लेकर कराह की अग्नि प्रज्वलित की जाती है।जिसमें तीन बड़े कराह में दूध एकत्रित कर उसे खौलाया जाता है।जब दूध उबलने लगता है तो पतिवाह (जो पूजा के प्रमुख होते हैं ) उसे अपने शरीर में डालकर स्नान करते हैं।सबसे अहम् बात यह है कि 24 घंटों के उपवास के बाद कुछ चुनिन्दा पतिवाह इस प्रयोग को करते हैं।जिसके बाद उस दूध में खीर बनाकर सभी को प्रसाद वितरित किया जाता है।यहाँ अहीर समाज का भव्य आयोजन होता है जिसे गोपनीय रखने की प्रथा है हांलाकि अब इस आयोजन को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है जिसमें समाज व परिवार के लोग शामिल होते हैं।इस पूजन से सबके सुख समृद्धि की कामना  के साथ शांति के साथ जीवन यापन की भावना  जुड़ी होती है।इस पूजन में भी लाठी का विशेष महत्त्व होता है।

 

Post a Comment

0 Comments

जशपुर के इस गांव में उपजा धर्मांतरण का विवाद,जहां से हुई थी ईसाइयत की शुरुआत