... ब्रेकिंग पत्रवार्ता: ये कैसी डॉक्टरी..? आज छुट्टी है,कलेक्टर को लेकर आओगे तो भी नहीँ करुंगा ईलाज,आपातकालीन ड्यूटी में तैनात डॉक्टर ने तड़पते मासूम बच्चे का ईलाज करने से किया मना,ऐसे लापरवाह चिकित्सक पर कार्यवाही कब..? बड़ा सवाल .? अधिकारी बदलने के बावजूद नहीं सुधर रही जिला अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था...?

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ब्रेकिंग पत्रवार्ता: ये कैसी डॉक्टरी..? आज छुट्टी है,कलेक्टर को लेकर आओगे तो भी नहीँ करुंगा ईलाज,आपातकालीन ड्यूटी में तैनात डॉक्टर ने तड़पते मासूम बच्चे का ईलाज करने से किया मना,ऐसे लापरवाह चिकित्सक पर कार्यवाही कब..? बड़ा सवाल .? अधिकारी बदलने के बावजूद नहीं सुधर रही जिला अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था...?

जशपुर,टीम पत्रवार्ता,20 अगस्त 2021

BY योगेश थवाईत 

जहां मानवीयता खत्म होकर निर्ममता शुरु हो जाती है वहां सेवा कभी नहीं होती।ये आप भूल गए हैं कि आप जिस कुर्सी पर बैठे हैं वह सेवा के लिए है  न की आपके तानाशाही रवैये के लिए।मेडिकल साइंस की पढ़ाई के बाद अब मानव सेवा और संवेदना का पाठ पढ़ने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

दरअसल जशपुर के राजा देवशरण जिला चिकित्सालय में चिकित्सकों की लापरवाही कम होने का नाम नहीं ले रही।बीते दिनों इमरजेंसी में एक चिकित्सक के नदारद रहने पर जमकर बवाल मचा था।इस बार भी आपातकालीन ड्यूटी में तैनात चिकित्सक ने एक तड़पते हुए बच्चे का ईलाज करने से मना कर दिया।

यहां ड्यूटी में पदस्थ चिकित्सक ने 8 साल के बच्चे का इलाज करने से तब मना कर दिया जब उसके पिता लगातार बुखार आने पर बच्चे को अस्पताल लेकर पहुंचे थे। एक ओर छत्तीसगढ़ सरकार बच्चों के स्वास्थ्य का खास ध्यान रखते हुए किसी भी प्रकार के बुखार आदि लक्षण पर तत्काल अस्पताल ले जाने प्रचार अभियान चला रही है,वहीं आपातकालीन चिकित्सा में पदस्थ चिकित्सकीय लापरवाही या निर्ममता बड़े सवाल खड़ी कर रही है। 

पीड़ित विनोद निकुंज ने बताया कि वे अपने 8 वर्षीय बच्चे को लेकर अस्पताल पहुंचे थे। बच्चे को लगातार बुखार आ रहा था जिससे वो परेशान थे। बच्चे को जब वे अस्पताल लेकर पहुंचे तो अस्पताल की छुट्टी थी, पर्ची कटवाकर जब वे आपातकालीन ड्यूटी में पदस्थ चिकित्सक डीके अग्रवाल के पास जब केजुअल्टी वार्ड पहुंचे तो मरीज को देखते ही भड़क गए और बोले मैं इलाज नहीं करूंगा आज छुट्टी है। पिता विनोद निकुंज ने कहा बेटे की स्थिति बार बार खराब हो रही है और वे चिंतित हैं, लेकिन डॉ का दिल नहीं पसीजा। डॉ ने कहा कलेक्टर को बुला लो या ऊपर के लोग को बुला लो, ओपीडी के मरीज का इलाज छुट्टी के बाद ही होगा।

इस दौरान और भी मरीज आये जिसमें से कुछ का इलाज तो डॉ ने किया लेकिन अधिकांश मरीजों को भगा दिया गया। बेटे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित पिता ने काफी अनुनय विनय किया लेकिन डॉक्टर अपनी जिद पर अड़े रहे। अंततः दोनों के बीच थोड़ी बहस भी हुई तब डॉक्टर ने कहां की छुट्टी के दिन आने वाले मरीजों के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं। 

जितनी देर डॉक्टर ने इलाज नहीं करने के लिए अपनी सफाई दी उतने देर में कई मरीजों को राहत पहुंचाई जा सकती थी। काफी देर के बाद एक अन्य चिकित्सक की मदद से व्यक्तिगत रूप से सेवा देते हुए बच्चे को राहत पहुंचाया गया। 

लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि चिकित्सा के नाम पर अरबों रुपए बहा देने वाले राज्य में क्या आपातकाल में एक बच्चे का इलाज भी संभव नहीं है। जिला चिकित्सालय एक 8 साल के एक मासूम बच्चे को बुखार की दवा भी नहीं दे सकती तो फिर यह करोड़ों अरबों की व्यवस्था आखिर किसके लिए है।जिला चिकित्सालय में चिकित्सकों के द्वारा लापरवाही और अड़ियलपन का यह कोई नया मामला नहीं है। कुछ लापरवाह चिकित्सकों की मनमानी के कारण जशपुर में कई बार दंगे फसाद भी हो चुके हैं और हॉस्पिटल में आगजनी जैसी घटना को भी अंजाम दिया गया है।

जिला प्रशासन के द्वारा यदि अस्पताल की व्यवस्था पर कड़ाई से कार्यवाही नहीं की जाती है तो जशपुर जिला मुख्यालय में जनाक्रोश को संभालना प्रशासन के लिए पहले भी मुश्किल हुआ है और भविष्य में भी संभावित है।

जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ आर एन केरकेट्टा ने बताया कि मामले की जानकारी मिली है।ईलाज में किसी प्रकार की लापरवाही ठीक नहीं,चिकित्सकों को गंभीरता से ईलाज करने का निर्देश दिया जा रहा है।लापरवाही बरते जाने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी।बच्चे के ईलाज की व्यवस्था की जा रही है।

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