योगेश थवाईत
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"जशपुर की खनिज सम्पदा हमारा फिक्स डिपोजिट है" मेरे जीते हुए कभी यहाँ कोई भी औद्योगिक स्थापना नहीं होगी यह बातें स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव कहा करते थे।वाकई अपनी सोच और अपने दृढ़ता के दम पर उन्होंने कभी उद्योगपतियों को यहाँ पैर पसारने का मौका नहीं दिया।शासन सत्ता बदलने,पद प्रभाव कम होते ही अब उद्योगपतियों की मंशा इस हरे भरे खुबसूरत वादियों को धूल धूसरित करने की है।यहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य को बिगाड़ते हुए प्रकृति से सीधा टक्कर लेने की तैयारी उद्योगपति कर चुके हैं।ये समझ से परे है कि जूदेव की दृढ़ता के संवाहक क्यों इससे अनजान बने बैठे हैं या फिर मौन सहमति के साथ इसका समर्थन कर रहे हैं ? हांलाकि मुद्दा अब किसी एक का नहीं रह गया इसके लिए समूचे जशपुर के साथ पक्ष विपक्ष को अपनी भूमिका तय करनी होगी जिससे इस महाविनाश से जशपुर को बचाया जा सके।
अब सीधे मुद्दे पर आते हैं।बीजेपी की 35 वर्षों की राजनीति के बाद भी जशपुर जिले को पर्यटन के क्षेत्र में स्थान नहीं मिल पाया।वहीँ कांग्रेस की सरकार आते ही पर्यटन के मानचित्र में तो जशपुर स्थापित हो गया और यहाँ के पर्यटन स्थलों की नई पहचान का कार्य भी शुरु कर दिया गया नए आयाम भी विकसित होने लगे और अब इस सम्भावना पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है।
ग्रीन बेल्ट रह गया सपना बन रहा अब रेड जोन
हांलाकि तब बीजेपी के शासनकाल में यहाँ उद्योगों को स्वीकृति नहीं मिली थी और अब तो औद्योगिक स्थापना के साथ खनन तक की स्वीकृति अंतिम चरण में है।अब जब पर्यटन के क्षेत्र में विकास की नई संभावनाओं के साथ जशपुर विकास के मुहाने पर खड़ा है तो जशपुर की शांत फिजा में जहर घोलकर उसे बरबाद करने की तैयारी उद्योगपतियों ने कर ली है।जमीन खरीदी के साथ चंद महीनों में यहाँ लौह उद्योग स्थापित किया जा रहा है जिसकी अंतिम तैयारी पूरी हो चुकी है।अब वह दिन दूर नहीं जब आप शुद्ध ऑक्सीजन के साथ सांस ले सकें।
स्टील प्लांट का काम शुरु
आपको बता दें कि जशपुर जिले के पत्थलगांव विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत कांसाबेल के पुरातात्विक धरोहर हथगड़ा से लगे टांगरगाँव में माँ कुदरगढ़ी एनर्जी एंड इस्पात प्राइवेट लिमिटेड (MKEIPL) द्वारा स्टील प्लांट की स्थापना की जा रही है।सारी तैयारियां लगभग अंतिम चरण में हैं यहाँ तक कि कम्पनी ने अपना ठिकाना तैयार करने का काम भी गाँव में शुरु कर दिया है और आगामी 4 अगस्त को इसकी जनसुनवाई भी प्रस्तावित है।हालांकि ऐसे मामलों में जनसुनवाई महज दिखावा ही होता है जहाँ भोले भाले ग्रामीणों को चंद पैसों का लालच देकर अपने पक्ष में करने का प्रयास किया जाता है।
क्या है प्रोजेक्ट
बात करें औद्योगिक स्थापना की तो यहाँ 4 लाख 62 हजार टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता का स्पंज आयरन डीआरआई प्लांट,5 लाख 20 हजार टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता का बिलेट स्टील मेकिंग शॉप इन्डक्शन फर्नेश प्लांट,5 लाख टन प्रतिवर्ष क्षमता का टीएमटी बार रोलिंग मिल व 70 मेगावाट उत्पादन क्षमता का बिजली कैप्टिव पावर प्लांट स्थापित किया जा रहा है।लगभग 71 एकड़ में उक्त परियोजना 610.7 करोड़ की लागत से स्थापित की जा रही है।
आज भी मौजूद है प्राचीन सभ्यता
कांसाबेल के पुरातात्विक धरोहर हथगड़ा के विषय में 70 वर्षीय प्रेमसिंह बताते हैं उनकी तीन पीढ़ी यहाँ गुजर गई।उन्होंने बताया कि रियासत काल में कभी यहाँ 107 तालाब हुआ करते थे और अब लगभग दर्जन भर तालाब यहाँ मौजूद हैं।यहाँ के विषय में पुरातत्वविदों का कहना है कि पहले यह हस्तगढ़ के नाम से प्रसिद्ध था।जब इसका कारण जानने का प्रयास किया गया तो पता चला कि यहाँ जमीन के नीचे पुरा एक साम्राज्य एक गढ़ दबा हुआ है जहाँ आज भी खनन करने पर प्राचीन मूर्तियाँ व अवशेष मिलते हैं।
वहीँ पत्रकार मोती बंजारा इस क्षेत्र के बारे में बताते हैं कि यह पुरात्विक क्षेत्र है और जहाँ प्लांट की स्थापना हो रही है वह गाँव से लगा हुआ ईलाका है।यहाँ का पुरातन इतिहास है जहाँ रियासतकालीन अवशेष आज भी मिलते हैं ।अविभाजित मध्यप्रदेश में यहाँ तत्कालीन कलेक्टर ने लगभग 30 से 35 एकड़ क्षेत्र को प्रतिबंधित भी किया था।
वैसे भी इस क्षेत्र में स्वर्ण धातुओं की भरमार बताई जाती है।पहले भी यहाँ एक लोहार को 4 किलो सोना मिला था,सोने से भरी हांडी व प्राचीन मूर्तियाँ,शिवलिंग मिल चुकी हैं जिसका कोई अता पता नहीं है।वहीँ गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि यहाँ तालाब में हाथी गड़ने के कारण इसे हाथीगड़ा कहने लगे फिर यह हथगड़ा के नाम से प्रचलित हो गया।
प्रकृति,पर्यावरण के साथ वन्यजीवों पर सीधा प्रभाव
इस प्रोजेक्ट की स्थापना के साथ पर्यावरण को सुरक्षित रखने के तमाम दावे किये जा रहे हैं।वहीँ इस परियोजना को हरी झंडी मिलने से यहाँ के प्राकृतिक वातावरण के साथ पर्यावरण को भी ख़ासा नुकसान होगा।वन्यप्राणी के जानकार पर्यावरण प्रेमी रामप्रकाश पाण्डेय ने बताया कि जहाँ यह प्लांट स्थापित किया जा रहा है वहां से महज 2 से 5 किलोमीटर की दुरी पर हाथियों का गलियारा है।जशपुर जिले में हाथियों के दो रुट हैं जिसमें ओड़ीशा से तपकरा फरसाबहार सीतापुर मैनपाट हाथियों की चहलकदमी रहती है वहीँ बादलखोल से कुनकुरी,कांसाबेल,पंडरीपानी, खूंटापानी,झिम्की, कोकियाखार,जामझोर,अम्बाकछार,कोतबा होते हुए तुमला और लुड़ेग से मठपहाड़ होते हुए चिकनीपानी,रेडे, जमरगी,सेमरकछार,केंदुटोला,शबदमुंडा होते हुए फरसाबहार, दुलदुला की ओर हाथी विचरण करते हैं।
इसके साथ ही स्टील प्लांट के लिए मैनी नदी से पानी लेने की तैयारी है आपको बता दें की मैनी एकमात्र जीवनदायिनी नदीं है जो पुरे क्षेत्र को सिंचित करती है।जिसपर सैकड़ों किसान आश्रित हैं वहीँ प्लांट से निकलने वाले प्रदुषण की कल्पना से ही भयावहता परिलक्षित होती है।
बहरहाल इस विषय पर जितना लिखें कम है आगे लेखनी चलती रहेगी अब समझना होगा कि जशपुर जिले में एक स्टील उद्योग की स्थापना के साथ वह दिन दूर नहीं जब पत्थलगांव से लेकर जशपुर तक और कांसाबेल से लेकर पाठ के सुदूर वनांचल तक कुकुरमुत्तों की तरह उद्योग स्थापित हो जाएँगे।
तत्काल पैसे व नौकरी का लोभ,प्रलोभन देकर काम शुरू करने के बाद भविष्य की पीढ़ी प्रदुषण के साथ नारकीय जीवन बिताने पर मजबूर हो जाएगी और जशपुर को ग्रीन जोन बनाने का सपना धरा का धरा रह जाएगा।इस गंभीर मुद्दे पर आगामी 4 अगस्त को जनसुनवाई होनी है निश्चित ही उर्जावान लोग इसका खुलकर विरोध भी करेंगे।इसके साथ हमें समझना होगा कि ऐसे औद्योगिक प्रगति से हमारे भविष्य का विनाश सुनिश्चित है।
अब देखना होगा कि जशपुर को सुरक्षित रखने के लिए आपका अगला कदम क्या होगा ? यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ क्षेत्र के विधायक, नेता, सांसद, जनप्रतिनिधि, पक्ष,विपक्ष,पत्रकारों,समाजसेवियों के साथ पर्यावरण प्रेमी अपने जशपुर को ग्रीन जशपुर बनाने के लिए क्या करते हैं ? कैसे इस महाविनाश से जशपुर को बचाते हैं..?
अगली बार इसी मुद्दे के साथ .....फिर ...मिलेंगे...
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